- vaibhav palhade
बारिश
बादलो का संगम हुआ और बरसात ये हुई,
बिखरे पड़े थे हम हमे जोड़ने की साजिश ये हुइ,
थंब गया यह पल मेरा,मेरी धड़कन थी रुकी
देखते ही तुम्हे मेरे इश्क की बरसात यह बरसने लगी
कभी ये बुँदे तुम्हारी गालो को छूती,कभी यु पलकों पे आ रुकी,मगर अफ़सोस इस बात का है की मेरे इश्क की बारिश तुम्हे पूरी तरह भीगा ना सकी ||
जब ये पानी की बुँदे तुम्हे छूती थी
ना जाने क्यूँ दिलको मेरे जलन होती थी
बारिश की बुँदे तोह यह तुमे छूकर मोती बन गई
ना जाने क्यूँ होंटो की हसी आपके ख़ुशी हमारी बन गई
चर्चे तो हुए थे हमारे भी,बस्स आशिकों वाला इंजाम अभी था बाकी
मगर अफ़सोस इस बात का है की मेरे इश्क की बारिश तुम्हे पूरी तरह भीगा न सकी ||
फुल की पंखुड़ी नही खुद फुल ही हो तुम
मैं वोह मधुमक्खी हु जोह यह जाम पी रही झुम
मगर आपने भी बड़ी टशन से छाता खोला और होगया यह इश्क का बादल दुखी
मगर अफ़सोस इस बात का है की मेरे इश्क की बारिश तुम्हे पूरी तरह भीगा न सकी
अब काटने लगा हु में पल उन्ही बादलों को देखकर
इश्क तोह बह गया सारा सम्मंदर में नदियों से होकर
लापता हुए बादल अपने उसूल उन्होंने बदल दिए
पहले पानी बन बहते थे जमीन पर अब आँखों से यह बेहने लगे
परछाई तुम्हारी आँखों में है अब देखने ख्वाबोंमें पीलके यह झुकी
मगर अफ़सोस इस बात का है की मेरे इश्क की बारिश तुम्हे पूरी तरह भीगा न सकी
-वैभव महादेव पल्हाड़े